रविवार, 2 जून 2013

बातचीत की कला


दोस्तों,        

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । उसे अपने विचारोंऔर भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों को वाणी रुपी  माला में पिरोकर प्रस्तुत करना पड़ता है । वर्तमान समय मैं तो बातचीत की कला ( Talking ability)  का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। सभी तेजी से सफलता की सीढ़ीयां चढ़ना चाहते है । काम और व्यापार के सिलसिले में उन्हें अजनबियों से मुलाकात करनी पड़ती है । सभी की कोशिश रहती है कि बातचीत और विनम्र व्यवहार से सामने वाले का दिल जीता जाए । आज हर क्षेत्र में व्यवहार कुशल व्यक्ति को प्रमुखता दी जाती है, चाहे वे प्राइवेट सेक्टर्स हो या सरकारी ।

यहां मैं आपको पहले अकबर - बीरबल के किस्सों में से एक कहानी सुनाता हुं जो मनोरंजन के साथ साथ प्रेरणात्मक भी है ।

एक रात सोते समय बादशाह अकबर ने यह अजीब सपना देखा कि केवल एक छोड़कर उनके बाकी सभी दांत गिर गए हैं। फिर अगले दिन उन्होंने देश भर के विख्यात ज्योतिषियों व नुजूमियों को बुला भेजा और और उन्हें अपने सपने के बारे में बताकर उसका मतलब जानना चाहा। सभी ने आपस में विचार-विमर्श किया और एक मत होकर बादशाह से कहा, ‘‘जहांपनाह, इसका अर्थ यह है कि आपके सारे नाते-रिश्तेदार आपसे: पहले ही मर जाएंगे।’’ यह सुनकर अकबर को बेहद क्रोध हो आया और उन्होंने सभी ज्योतिषियों को दरबार से चले जाने को कहा। उनके जाने के बाद बादशाह ने बीरबल से अपने सपने का मतलब बताने को कहा। कुछ देर तक तो बीरबल सोच में डूबे रहे, फिर बोले, ‘‘हुजूर, आपके सपने का मतलब तो बहुत ही शुभ है। इसका अर्थ है कि अपने नाते - रिश्तेदारों के बीच आप ही सबसे अधिक समय तक जीवित रहेंगे।’’ बीरबल की बात सुनकर बादशाह बेहद प्रसन्न हुए। बादशाह ने बीरबल को ईनाम देकर विदा किया।

दोस्तों, यहां पर गौर करने वाली बातयह है कि बीरबल ने भी अकबर को वही बात कही थी जो उन ज्योतिषियों ने कही थी,  लेकिन दोनों का बात कहने का ढंग अलग - अलग  अलग था । साथ ही दोनों तरीकों पर प्रतिक्रियाएं भी एक दुसरे के विपरीत थी ।

हम यहां पर आपको बातचीत से संबंधित कुछ जरुरी सुझाव दे रहे हैं,  जिन्हें आप अपना सकते है ।

1. आत्मविश्वास -: आत्मविश्वास का गुण  एक सफल वक्ता बनने के लिए बेहद जरुरी है । व्यक्ति के बातचीत के तरीके और हावभाव में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट नजर आती है । आत्मविश्वासी व्यक्ति अपनी बात को जोश और उत्साह के साथ प्रस्तुत करता है , साथ ही उसकी चेहरे पर सच्ची मुस्कान रहती है ।वह अपनी बात को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत नहीं करता है।वह जो भी बोलता है पुरे विश्वास के साथ बोलता है । वह कभी दुसरों के दिल को चोट पहुंचाने वाली बात नहीं करता है ।

2. भाषा की सरलता और स्पष्टता का ध्यान रखें । एक  कुशल वक्ता बनने के लिए आपको अपनी विचारों को सीधे,  सरल और स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करना आना चाहिए ; नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है । अपने वक्तव्य ( lecture) में जानबुझ कर कठिन और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं करें ।याद रखें - " विचारो की सरलता और स्पष्टता से ही वाणी सरल और स्पष्ट बनती है ।"

3. अच्छे श्रोता बनें । एक अच्छे वक्ता की पहचान एक अच्छे श्रोता के रुप में भी होती है । वह न केवल शब्दों को ध्यान से सुनता है , बल्कि उनके अंदर छुपे हुए भावों को भी पढ़ लेता है । अगर उसे कोई बात समझ में नहीं आती है तो बीच में सवाल  पुछ कर अपनी शंका दुर कर लेता है । इससे सामने वाले को भी लगता है कि श्रोता उसकी बातों में दिलचस्पी ले रहा है ।

4. दुसरों को भी बोलने का अवसर दें । अक्सर कुछ लोगों को ज्यादा बोलने की आदत होती है या कहें बिमारी होती है । उन से तंग आकर लोग उनसे दुर भागने लगते है । कुशल वक्ता अपने बात कहने के बाद या पहले ओरों को भी बोलने का अवसर प्रदान करता है और उनकी बातों को ध्यान से सुनता है ।बीच में अपनी बात कहने के लिए दुसरों की बात भी नहीं काटता है ।

5. बहसबाजी न करें । बात चीत में तर्क वितर्क का होना अच्छी बात है , इससे किसी विषय का सार्थक हल निकलता है । तर्क वितर्क करने से आपको नई जानकारी भी मिलती है ।  लेकिन अपनी बात पर अढ़े रहने से बातचीत बहसबाजी का रुप ले लेती है । वस्तुत: बहसबाजी केवल अहंकार की ऐसी लड़ाई है,  जिसमें  एक दुसरे पर चिल्लाने की होड़ सी लगी होती है । बहसबाजी से कई बार हमारे संबंध भी बिगड़ जाते है ।

मैं अपनी विचारों का अंत कबीरदास जी के इस दोहे के साथ करता हुँ ।

" ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोये ।

औरन को सीतल करै आपहूं सीतल होये ।"

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5 टिप्‍पणियां:

  1. " ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोये । औरन को सीतल करै आपहूं सीतल होये ।"
    shital ho gaya man padhkar !

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    1. कबीर जी कहते है कि अपनी वाणी मे मिठास /
      मधुरता लान चाहिए। बोलते समय आप इतने लिन होईए कि सामने वाले का मन मोहीत हो जाए ऐसा बोलना चाहिए कि अपना मन को सूकून मिले और दुसरो को भी।

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  2. सत्य ही नहीं मधुर सत्य आचरणीय है.

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